मंगलवार, 25 जनवरी 2011

इन शब्दों को न भूलें --- ओसार। सेहन। दालान । बूशट । अंगौछा = गमछा। तहबन = लुंगी। छीमी =मटर। चोकरना= पशु का चिल्लाना। किवाड़ी = दरवाजा। सोटा/ लहुरा =छोटा । सज्जी = ढेर सारा ।

रविवार, 23 जनवरी 2011

फ़ैज
जंगल में सांप, शहर में बसते हैं आदमी,
सांपों से बचके आये तो डसते हैं आदमी । ------ फ़ैज

’जोश’ मलीहाबादी
जंगलों में सर पटकता जो मुसाफ़िर मर गया,
अब उसे आवाज देता कारवाँ आया तो क्या ? ----- ’जोश’ मलीहाबादी

निदा फ़ाज़ली
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये । ------ निदा फ़ाज़ली

रविवार, 7 दिसंबर 2008

मुम्बई का तमाशा

ताज होटल में आतंकी हमले के बाद का तमाशा शर्मनाक है / शहीदों को लेकर इस बार सियासत करने वाले जनविरोध के आगे समर्पण कर बैठ गए लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया ने तो संदेशों का बाजार सजा दिया/

सोमवार, 17 नवंबर 2008

मुहब्बत की नगरी आगरा का एक सच
भारी बोझ सह न सका यह बेजुबान और
बोझ से यह बीच सड़क पर बेसुध गिर गया/

सोमवार, 10 नवंबर 2008

क्राइम का नया पैतरा

तमंचा दिखाकर लूटपाट करने वालों ने इन दिनों अपने तेवर बदले हैं/ अब असलहों की आधुनिकता मायेने नहीं रखती/ आगरा में इन दिनों बगैर हथियार के शातिर अंदाज में अपराधियों ने जिस तरह से सामान उठायें हैं वह सोचने लायक है / शहर के नमी डॉक्टर गुरुनानी की कार के आगे गन्दगी फैलाकर उन्हें बताना फ़िर चुपके से कार के भीतर से उनका बैग उठा लेना क्राइम के नया पैतरे की झलक भर है / ऐसे में लोगों को सचेत हो जाना चाहिए ताकि उनके साथ इस तरह की वारदात न हो सके/

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

राज का गुंडाराज

नफरत की सियासत करना वाले राज ठाकरे ने मुम्बई की मिलीजुली संस्कृति को आग की लपटों के हवाले छोड़ दिया है/ सच मायने में चाचा से आगे निकलने की चाहत ही राज को आग उगलने को प्रेरित करती है /
शांत बिहारी को बाला साहब ठाकरे ने बीमारी बताया था/ अब उनका भतीजा और आगे निकलकर उत्तर भारत के लोगों पर सीधे डंडे बरसा रहा है/ मतलब साफ है और संदेश यही है की मुल्क को वोट की खातिर छेत्रवाद के पाले में समेटने की कोशिश है/

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

जमशेदपुर सिटी यानी इमानदारी जिन्दा है

इमानदारी जिन्दा है
बात सिर्फ पाँच रुपये की है लेकिन इसमेसहर का आइना झलकता है/ इस शहर की खूबी तो देखिये यहाँ घरों में काम कराने वाली महिलाएं बेहद ईमानदार हैं/ यकीनन आप उनके हवाले पूरा घर छोड़कर कहीं भी घूमने जा सकतें हैं / मई एक बार आफिस से आया तो देखा फर्सपर पाँच का सिक्का पड़ा है/ गलती से मैं भूल गया था लेकिन दूसरे रोज मैंने जानबूझकर पैसे को छोड़ गया / काम वाली ने फ़िर उसे जस का तस् छोड़ दिया/ बस इसी वाकये ने यह संदेश दे दिया की नगरी में आदिवासी बेहद ईमानदार हैं / (मेरा अनुभव -- हिमांशु त्रिपाठी )